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बालोच्य महाकाव्यों की प्रवृत्तियाँ तथा विशेषताएं अनन्त विस्तार तथा देवी सहभाग से असम्भावनाओं की परतों में दबा दिया है। काव्यमण्डन और श्रीधरचरित का स्वयम्वर-वर्णन कालिदास से प्रेरित तथा प्रभावित है; पद्मसुन्दर का आदर्श नैषधचरित का स्वयम्वर वर्णन रहा है। पुरसुन्दरियों का सम्भ्रमचित्रण महाकाव्यों की एक ऐसी रूढि है, जिसके विषय में साहित्यशास्त्र मौन है । बुद्धचरित से उद्भूत इस रूढि को पल्लवित करने में कालिदास, माघ तथा श्रीहर्ष का विशेष योग रहा है । जैनमहाकाव्यकारों का इसके प्रति कुछ ऐसा अनुराग है कि अनेक समर्थ कवियों ने इस प्रसंग को अपने काव्यों में सोत्साह स्थान दिया है। जहां जयशेखर और पद्मसुन्दर ने इसका प्रयोग विवाह के संदर्भ में किया है, वहां नेमिनाथमहाकव्य, भ. बा. महाकाव्य, हीरसौभाग्य, सुमतिसम्भव तथा विजयप्रशस्ति में प्रव्रज्या ग्रहण करने के लिये जाते समय कुमार को देखने के प्रसंग में पौरांगनाओं की अधीरता का चित्रण किया गया है। कालिदास ने इस सम्भ्रमचित्रण को कवित्व के चरम विन्दु पर पहुंचा दिया था। अतः इस रूढि के प्रति असन्दिग्ध पक्षपात के बावजूद अन्य जैनेतर तथा जैन महाकाव्यों में कालिदास के भावों की प्रतिगूंज ही सुनाई पड़ती है । नायक तथा प्रतिनायक (?) के द्वन्द्व युद्ध से पूर्व विपक्षी सेनाओं की भिड़न्त के वर्णन पर माघ के समानान्तर वर्णन का स्पष्ट प्रभाव है । भारवि के वर्णन भी जैन कवियों के अन्तर्मन में अवश्य रहे होंगे । वस्तुव्यापार के ये वर्णन सभी महाकाव्यों में कमवेश पाये जाते हैं, यद्यपि उनका गुणात्मक मूल्य भिन्न-भिन्न है।
साहित्य की अन्य विधाओं के समान जैन महाकाव्य भी प्राचीन लब्धप्रतिष्ठ महाकाव्यों का समानान्तर प्रस्तुत करने की भावना से प्रेरित हैं । माघ की काव्यरूढियों ने कतिपय जैन महाकाव्यों को कितना गहरा प्रभावित किया है, इसका संकेत किया जा चुका है । कुछ काव्य पूर्णतया प्राचीन काव्यों पर आधारित हैं । भ. बा. महाकाव्य कथानक के विनियोग में माघ का ऋणी है । घटनाओं के संयोजन, रूढियों के परिपालन तथा रसचित्रण में पुण्यकुशल माघ के पग-चिह्नों पर चलते दिखाई देते हैं । देवानन्दमहाकाव्य न केवल कथानक की दृष्टि से शिशुपालवध का अनुगामी है अपितु इसमें माघकाव्य के प्रथम सात सर्गों की समस्यापूर्ति के द्वारा माघ-सदृश पाण्डित्य स्थापित करने का घनघोर उद्योग किया गया है। माघ वस्तुत: कालिदासोत्तर संस्कृत-महाकाव्य के एकच्छत्र सम्राट हैं जिनके सर्वव्यापी प्रभाव से नयचन्द्र जैसे इतिहासकार भी नहीं बच सके । जहां ये काव्य, आंशिक रूप से, माघ से प्रेरित हैं, जैनकुमारसम्भव की रचना कालिदासकृत कुमारसम्भव का जैन समानान्तर प्रस्तुत करने के उद्देश्य से की गयी है । यदुसुन्दर को श्रीहर्ष के भरकम काव्य का लघु संस्करण कहा जा सकता है । कुछ अन्य काव्यों पर भी, विभिन्न रूपों में, प्राचीन कवियों का न्यूनाधिक प्रभाव है।