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जैन कवियों के ब्रजभाषा-प्रबन्धकाव्यों का अध्ययन
बढ़ाने में सक्षम और हमारे आलिंगन-योग्य हैं। उसमें स्थल-स्थल पर सूक्तियों, लोकोक्तियों और मुहावरों का समुचित प्रयोग हुआ है ।
छन्दों में प्रचलित छन्दों को बहुलता से अपनाया गया है । अनेक कवियों की दृष्टि संगीतात्मक छन्दों के चयन की ओर रही है। विविध रागों पर आधारित 'देशियों' एवं 'ढालों' का प्रयोग प्रचुर मात्रा में हुआ दृष्टिगोचर होता है।
प्रबन्धों को सामान्य विशेषताएँ
जैन प्रबन्धकाव्यों की कतिपय निजी विशेषताएं रही है, जो द्रष्टव्य हैं :
(१) अधिकांश काव्यों की भित्ति जैन दर्शन या धर्म पर आधृत है। उनमें अनेक स्थलों पर वैदिक धर्म एवं दर्शन के अनेक तत्त्वों का भी विनिवेश है।
(२) विषय की दृष्टि से भी अधिकतर रचनाएँ सामाजिक या राजनैतिक कम और पौराणिक, दाशनिक या धार्मिक अधिक हैं।
(३) उनके कथानकों में परम्परा-पालन के साथ-साथ नवीनता के परिपार्श्व की झलक है।
(४) उनमें प्रेम और शृगार के चित्रों को सीमित रूप में ग्रहण किया गया है। प्रधानता शान्त या भक्ति रस की है। अधिक प्रबन्धकाव्य शान्त रसावसित हैं।
(५) उनमें से अधिकांश के नायक तीर्थकर हैं। कुछ में नायक के पद पर सती नारियों को प्रतिष्ठित किया गया है । कुछ रूपक एवं प्रतीकात्मक प्रबन्धों में 'चेतन' आदि को नायक का रूप दिया है । कुछ के नायक राजा, राजकुमार या सामान्य पुरुष हैं ।
(६) प्रायः सभी प्रबन्धकृतियों में हिंसा पर अहिंसा, असत्य पर सत्य, वैर पर क्षमा, राग पर विराग, पाप पर पुण्य की विजय का उद्घोष है ।