Book Title: Jain Kathamala
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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है जैसा कि वैदिक परम्परा में है । जैन परम्परा राक्षस जाति का उद्भव भी. . - एक ही मूल से मानती है । वह विद्याधर जाति से उत्पन्न हुई, जो भारत की
ही एक जाति थी । इस दृष्टि से राम-रावण युद्ध दो संस्कृतियों का युद्ध नः होकर केवल धर्म का अधर्म के विरुद्ध युद्ध था और अधर्म था पर-स्त्रीहरण । इस अधर्म का ही इस युद्ध के द्वारा नाश हुआ । रावण इसी दोष के कारण मारा गया भोर राम विजयी हुए। तुलना का आशय. .. . . :::
वैदिक और जैन परम्परा की तुलना और कथा भेद दिखाने का आशय मतभेद बढ़ाना नहीं अपितु समग्रता लाना है ! ::
"वास्तव में महापुरुषों के जीवन पर विवाह होने या न होने अथवा एक विवाह और अनेक विवाह का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। एक पत्नीव्रत धारी राम भी वैदिक परम्परा के अनुसार भगवान हैं तो सोलह हजार पत्नियों के. स्वामी श्री कृष्ण भी । बल्कि एक पत्नीधारी राम.. विष्णु के चतुर्थांश, बारह कला के अवतार थे और श्री कृष्ण सम्पूर्ण-सोलह कलाओं के । ...... - महापुरुषों के जीवन-चरित्र के मूल्यांकन की .एक ही.. कसौटी होती है
और वह है उनके लोकहितकारी कार्य, उज्ज्वल, चरित्र, लोकनायकत्व । विवाह आदि अन्य बातें तो गौण होती हैं। यही मार्ग समीचीन है. और यही होना भी चाहिए । विवादास्पद स्थलों को छोड़कर प्रेरणाप्रद बातों को ग्रहण करना यही अभीप्सित और सुख शान्ति का मार्ग है। .................
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राम-कथा की रोचकता और राम के सद्गुणों के कारण प्राचीन काल से ही. इसका प्रसार विश्वव्यापी रहाः ।.. एशिया की सभी. प्राचीन भाषाओं में राम का गुण-गान मिलता है । भारत में तो वे ईश्वर के रूप में पूजे जाते. ही । रहे हैं किन्तु बाहर भी उनका रूप कम लोककल्याणकारी नहीं रहा। भारत की तो सभी भाषाओं में राम का लोकरंजनकारी रूप प्रगट हुआ है। उनके . उज्ज्वल चरित्र और सद्गुणों को प्रगट करने वाले उद्धरण भरे पड़े हैं। किन्तु