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चढती रती || मुझ|| सरबज्ञ महाज्ञातां || आतम अनुभव को दाता ॥ तो तूां लही यै सुखाता | धनं २ जे जग में तुम ध्यात |३| मुझ व्हर || सिब सुख प्राथना करसँ उज्वल ध्यान हिये घर || रसना तुम महिमा। करयूँ "प्रभु इम भवसागर से तिरसूँ |४| मुझे || चंद चकोरन के यनमें ॥ गाज अवाजहू वेचन में ||पय अभिलाखा ज्यों त्रियतनमें।। त्यां बसियो तँ यो चितवन में || ९ || जो सुनजर साहिब तरी ॥ तौ यांनी विनंती मरी ॥ काटौ भरम करम बेरी || पशु पुनरपिनहि परूभव फेरो ||
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|||| मुझे हर || आतम ज्ञान दसा जागी - तुम सेती मेरी लौ लागी । अन्य देव भ्रमला भागी || बिनैवंद तिहारी अनुरागी || ॥ मुझ हेर ॥ चंद प्रभु जग जीवन