________________ Tax Xxxemomxxcomxxx कि कम है कि जिऔर कमें उन Extensions xxx xx-5xxcite-X (--- - X - 2' 404-200 ( 13 ) A फल मिलने से रुक नहीं सकता। सामग्री इकट्ठी होगई फिर कार्य श्राप ही श्राप होने लगता है। उदाहरणार्थ-एक मनुष्य धूप में खड़ा है, गर्म चीज खाता है और चाहता है कि प्यास न लगे सो क्या किसी तरह प्यास रुक सकती है? ईश्वर कर्तृत्ववादी कहते हैं कि ईश्वर की इच्छा से प्रेरित होकर o कर्म अपना अपना फल प्राणियों पर प्रकट करते हैं / इस पर कर्मवादी कहते हैं कि कर्म करने के समय परिणामानुसार / जीव में ऐसे संस्कार पड़ जाते हैं कि जिनसे प्रेरित होकर कर्ता जाव कर्म के फल को आप ही भोगते हैं और कर्म उन पर अपने फल को श्राप ही प्रकट करते है। (3) तीसरे श्राक्षेप का समाधान-ईश्वर चेतन है और जीव भी चेतन, फिर उन में अन्तर ही क्या है ? हॉ, अन्तर इतना हो सकता है कि जीव की सभी शक्तिया श्रावरणों से घिरी हुई हैं और ईश्वर की नहीं। पर जिस समय जीव अपने के आवरणों को हटा देता है उस समय तो उसकी सभी शक्तियाँ पूर्णरूप में प्रकाशित हो जाती हैं फिर जीव और ईश्वर में विषमता फिस यात की? विपमता का कारण जो औपाधिक कर्म है, उसके हट जाने पर भी यदि विपमता बनी रही तो फिर मुक्ति ही क्या है ? विषमता का राज्य ससार तक ही परिमित है भागे नहीं। इस लिये कर्मवाद के अनुसार यह मानने में कोई आपत्ति नहीं कि-सभी मुक्त जीव ईश्वर ही हैं / केवल विश्वास के बल पर यह कहना कि ईश्वर एक ही होना ना चाहिये उचित नहीं। सभी श्रात्मा तात्त्विक दृष्टि से ईश्वर a ही है। केवल बन्धन के कारण वे छोटे मोटे जीव रूप में देने TAXEIREXAXEXXEXXEY