________________ MARKET-TAREERXXXKAKKARXexerxxxeras XXXXxxxxxxXY ( 47 ) १ज्ञानावरणीय-जो कर्म आत्मा के ज्ञान गुण को श्राच्छादित करे (दॉपे), उसे ज्ञानावरणीय कहते हैं। 5 2 दर्शनावरणीय-जो कर्म आत्मा के दर्शन गुण को श्राच्छाMaदित करे, वह दर्शनावरणीय कहा जाता है। 5 3 वेदनीय-जो कर्म श्रात्मा को सुख दुःख पहुँचावे. वह वेदनीय कहा गया है। 4 मोहनीय-जो कर्म स्व–पर विवेक में तथा स्वरूप रमण में वाधा पहुंचाता है, वह मोहनीय कहा जाता है। . ५श्रायु-जिस कर्म के अस्तित्व (रहने) से प्राणी जीता है तथा क्षय होने से मरता है, उसे श्रायु कहते हैं। नाम-जिस कर्म के उदय से जीव नारक तिर्यञ्च श्रादि 2 नामों से संबोधित होता है, अर्थात्-अमुक जीव नारक है, अमुक तियञ्च है, अमुक मनुष्य है, अमुक देव है, इस प्रकार कहा जाता है, उसे नाम कर्म कहते हैं। 7 गोत्र-जो कर्म आत्मा को उच्च तथा नीच कुल में / जन्मावे उसे गोत्र कहते हैं। 8 अन्तराय-जो कर्म आत्मा के वीर्य, दान, लाभ, भोग, और उपभोग रूप शक्तियों का घात करता है, वह अन्तराय कहा जाता है। ___ अव मूल प्रकृतियों के पश्चात् उत्तर प्रकृतियों का विषय कहते में हैं। जैनागमतत्त्वदीपिकासे उक्त प्रकृतियाँअर्थयुफ्त लिखी जाती हैं। प्र०-ज्ञानावरणीय कितने प्रकार का है ? उ०-पांच प्रकार का / 1 मतिज्ञानावरणीय,२ श्रुतज्ञाना. वरणीय, 3 अवधिज्ञानावरणीय, 4 मनःपर्यायज्ञानावरणीय, 5 केवलझानावरणीय / हालाAMEReaxnormane xxxonxoryxnxx.XTOREXXXSamsong YamAXC COAR REME Un