________________ EXAXMARRIAxxxxxxxxxxx भरत चक्रवर्ती ने पद खण्ड का न्यायपूर्वक राज्य करते हुए फिर अन्त में शुभ भावनाओं द्वारा निर्वाणपद की प्राप्ति की ठीक इसी प्रकार शान्तिनाथ जी, कुन्थुनाथ जी, अमरनाथ जीय तीनों तीर्थकर गृहस्थावस्था में चक्रवर्ती की पदवी प्राप्त कर और पद् खण्ड का न्यायपूर्वक राज्यशासन करके फिर / तीर्थकर पद प्राप्त करके निर्वाणपद प्राप्त कर गए / यदि राज्य में शासन करते हुए उनकी अनर्थ रूप भावहिंसा होती तो वे / कदापि निर्वाणपद प्राप्त न कर सकते। क्योंकि इस वर्णन से प्रतिपक्ष में एक विपाक सूत्र में मृगापुत्र का वर्णन किया गया है कि उसने अत्यन्त दुखित होकर दीर्घकाल तक ससारचक्र में परिभ्रमण किया। उस के पूर्व जन्म के विषय का वर्णन ( करते हुए लिखा है कि वह पूर्व जन्म में एक एकाई राष्ट्र कूट नामक 500 सौ ग्रामों का शासन करने वाला अधिपति था, उसने 500 सौ ग्रामों के साथ अन्याय से वर्ताव किया था जिस से उसने दीर्घ संसार के कर्मों की उपार्जना की। इस कथन से स्पष्टतया सिद्ध हो जाता है कि वास्तव में न्याय का ही नाम अहिंसा है। पछुत सी अनभिज्ञ श्रात्माएँ इस प्रकार से प्रलाप करती / है कि जैनमत की. अहिंसा के कारण से ही भारतवर्ष का अधोपतन हुआ है। यह सय उन की अनमिशता ही है। क्योंकि जव जैनमत का राज्यशासन भारतवर्ष पर चलता था उस समय किसी भी विदेशी राजा का भारत पर # आक्रमण हुआ ही नहीं यदि कोई हुआ है तो वह पराजित हो गया। इस विषय में पाठकों को महाराजा चन्द्रगुप्त का EXROXEYemixCARRIEmeri