________________ प्रलमनामनामना शिप्प मगपम् ! जो तपोमरमर की माापता पिना स्वयति मनुसार पिया गाता उसका फापाला गुरु-शिष्य ! यो पोकर्म सरेकी साहापना को छोड़ कर फेवल समाधि अनुसार पिपा गातार सफा फसास * लोक में पता कि उसका प्रारमा सदैव प्रसन यता At कोपादि का उपय नहीं रोता / कार किया तपोकर्म निरपेच मापौस किया गया था और परलोक में निरपवता कारप से पासप भाराषिकता का मुख्य कारण मया मिस कारण समारमा पहुनीशी कर्म इम्पन को / | समापार निर्वाव पर की प्राप्ति कर देता है।मता मो तपोधर्म 1 किए जा सब मोफपीर परलोक की प्राधा कोरफर ही करने चाहिएं। शिष्य- मगन् / शरीर का ममत्व माय त्पागने स किस फल की प्राप्ति होती। गुरु-शिष्य शरीर ममत्व माप स्पागन से पान पर्यन औरबारिष की पूर्ण महार समापपना की जा सकती है जिसके कारण से निप पर की शीम माप्ति होगाती il और फिर सर्व प्रकार के ए ग्रान्तिपूर्वक सान किप गा" सक -बमकुमारपत्। शिप्य- मगपन् ! पशु प्रापिकी प्राण पोरकर यो सप मादिमिपाएंगी मातीमा फम क्या होता है। गह-चिप्प! प्रकार से छिपाएं करने पर कर्मप्र mपीर निर्वाच परकी शीर प्राप्ति होगाती। शिष्य- मगर ! मिलोमता करन से किस सपनी प्राप्ति होती! ESIDESH HEREBEESERFEF एम