________________ AKATARIMARITERE में निमग्न होता हुया प गुरु दे शिप्य ! सन्तोप रूपी धन की प्राप्ति हो जाती है, जिसका अन्तिम परिणाम यह होता है कि श्रात्मा निज स्वरूप म होता हुया परमात्म पद में लीन हो जाता है यात् जिस प्रकार दीपक की प्रभा में अन्य दीपक की प्रभा / * एकरूपता धारण कर लेती है, उसी प्रकार निर्लोभी भारमा भी सिद्ध पद में लीन हो जाता है, जिससे फिर वह अक्षय सुख का अनुभव करने वाला होता है। - शिष्य-हे भगवन् ! तितिक्षा सहन करने से किस गण की al प्राप्ति होती है? o गुरु-हे अन्तवासिन् ! कष्टों के सहन करने से आत्मा में है एक अलौकिक शक्ति का संचार होने लगता है, जिसके कारण स फिर आत्मा में उत्साह और अनन्त वल का प्रादुर्भाव होने से लग जाता है तथा फिर जिससे श्रात्मा विकास मार्ग की ओर झुकने लगता है। शिष्य-हे भगवन् ! ऋजुभाव धारण करने से किस गुण की प्राप्ति होती है? . गुरु-हे शिष्य ! श्रार्जवभाव के धारण करने से आत्मा की धर्म में परम दृढ़ता हो जाती है, फिर शुभ नाम कर्म की प्रकृतियों का भी बंध होने लगता है। इतना ही नहीं किन्तु उसका प्रत्येक जीव के साथ मैत्री भाव हो जाता है / कारण कि मैत्री श्रादि के विधात करने वाली छलादि क्रियाएँ होती हैं, उन / a क्रियाओं का आर्जवमाव में अभाव सा ही हो जाता है। श्रतः उसकी प्राणिमात्र से मैत्री हो जाती है। शिष्य-शुचि किसे कहते हैं ? EconormatxeEXERExamx भERICAXAMRAPEXIRIRAHARI