________________ WCOMXXXXRAKARExam xxxxesTRIKRRExe -- - - - ANKIRTEEKERXXXPREmxxxxnxxame ( 177 ) अर्थ-वह क्या भृत्य और सखा है जो कार्य के समय धन याचना से नहीं हटता। पार्थन प्रणयिनी करोति चाङ्गाष्टिं सा कि भार्या 102 .. अर्थ-जिस स्त्री का पति से फेवल धन और विषय के उद्देश से ही प्रेम है, वह भार्या ही क्या है। / स किं देशो यत्र नास्त्यात्मनो वृत्तिः 103 अर्थ--वह देश ही क्या है, जहां पर आत्मवृत्ति नहीं है। स किं बन्धुः यो व्यसने नोपतिष्ठते 104 अर्थ--यह भाई क्या है जो कष्ट के समय सहायक नहीं होता। तत्कि मित्रं यत्र नास्ति विश्वासः 105 अर्थ--वह मित्र ही क्या है जिस पर विश्वास नहीं है। स किं गृहस्थो यस्य नास्ति सत्कलत्रसंपत्तिः 106 अर्थ-जिस गृह में आशाकारिणी और पतिव्रता स्त्री नहीं है, वह गृहस्थ क्या है। तत् किं दानं यत्र नास्ति सत्कारः 107 अर्थ-वह दान ही क्या है, जहां पर सत्कार नहीं है। तत् किं भुनं यत्र नास्त्यतिथिसंविभागः 108 अर्थ-वह खाना हा क्या है जहां पर अतिथि संविभाग (अतिथि सत्कार) नहीं किया जाता। तत् किं प्रेम यत्र कार्यवशात् प्रत्यावृत्तिः 106 अर्थ-यह प्रेम ही क्या है जो किसी कार्य के वश होकर / किया जाता है / अर्थात् प्रेम गुण से नहीं अपितु कार्य मे है।। - XXGAAILEROL (MAA