Book Title: Jain Dharm Shikshavali Part 08
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: 

View full book text
Previous | Next

Page 188
________________ XRANG ( 176 ) में अर्थ-पर स्त्री के दर्शन करने में महाभाग्यवानों का अन्ध भाव होता है। अर्थात् महाभाग्यवान वही है जो पर स्त्री को 4 काम दृष्टि से नहीं देखते। . चणका इव नीचा उदरस्थापिता अपि नाचिकुर्वाणासे स्तिष्ठन्ति 118 अर्थ-नीच पुरुप चनों की तरह उदर में स्थापन किये जाने पर विकार किये विना नहीं ठहरते। अर्थात् जिस प्रकार चने उदर में जाने पर विकार उत्पन्न किये विना नहीं रहते उसी प्रकार नीच पुरुष कतिपय उपकार किये जाने पर के भी विकार किये विना नहीं रहते। तत्सौभाग्यं यत्रादानेन वशीकरणम् 116 अर्थ-सौभाग्य वही है जिसमें दान से अन्य प्रात्माओं को वश किया जाए। सा सभारण्यानी यस्यां न सन्ति विद्वांसः 120 __अर्थ-वह सभा श्ररण्य के समान है जिसमें विद्वान् नहीं है अर्थात्-सभा वही होती है जिसमें विद्वानों का समागम हो। क्योंकि जय समा में विद्वानों का समागम होता है तव तत्त्व पदार्थों का निर्णय भली भाति हो जाता है / यदि मूर्ख मंडल एकत्रित होजाए तव परस्परविवाद और वैमनस्य भाव उत्पन्न होता है / अत सभा वही कही जा सकती है जिस में विद्वान् वर्ग उपस्थित हो। नीति शास्त्र में अनेक प्रकार के अमूल्य शिक्षाप्रद रत्न मरे A पड़े है, विद्यार्थियों को योग्य है कि वे नीति शास्त्रों का स्वाध्याय LEOXIPEDXTREAKERXMAGEXXX

Loading...

Page Navigation
1 ... 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206