Book Title: Jain Dharm Shikshavali Part 08
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: 

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Page 193
________________ AERISPERIE ममयर (11) अगर तुम एक मी दिम स्पर्ष भर किपे पिना समस्त जीवन में काम करते होठो तुम प्रगामी सम्मों का मार्ग पल पिप देते हो। केबस मनित सुबपी वास्तविक मुबारी सब ता पीड़ा और क्षमा मारे। १.गो का धर्म संगठबसपही कार्परूप में परिहत] करणे पोम्पाइस मिनी पातें धर्म निर से दूर राना चाहिए। प्रेम V E एसा रेप अषमा रामो प्रेमरपालेको / पद पर सफे। प्रेमिपों की पांचों के हित मा-पितु समश्य ही रस पिस्थिति की पोपचा किपे पिया करेंगे। २को प्रेम नाही करते थे सिर्फ अपने ही किये जाते है मगर जो इसरों को प्यार करतेपन की रदिप भी इस काम पाती। पाकिम का मज़ा पोलिपे पास्मा पक बार फिर मस्सिपियर में होने को राजी भा। प्रेम से वप बिग्य हो गया और मसापीनवा! से मित्रता पी एम्पा पैदा होगा। होगों का कारना किमाम्यवाणी का सीमाम्म इस लोकभीर परलोकमोनोसानों में पसके विरतर म पारितोपित पब मोकातेहि प्रेम

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