Book Title: Jain Dharm Shikshavali Part 08
Author(s): Atmaramji Maharaj
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Page 194
________________ * --AT . m MEXTRARAMATERIXXNERIES ( 185 ) के लिये हैं। क्योंकि वरों के विरुद्ध खड़े होने के लिये भी प्रेम से ही मनुष्य का एकमात्र साथी है। 7 देखो अस्थिहीन कीड़े को सूर्य किस तरह जला देता है उसी तरह नेकी उस मनुष्य को जला डालती है जो प्रेम नहीं करता। ८जो मनुष्य प्रेम नहीं करता वह तभी फले फलेगा जब मरुभूमि के सूखे हुए वृक्ष के राठ में कोपलें निकलेंगी। वाह्य सौन्दर्य किस काम का जय कि प्रेम, जो आत्मा al का भूषण है, हृदय में न हो। 10 मेम जीवन का प्राण है। जिस में प्रेम नहीं, वह केवल मास से घिरी हुई हड़ियों का ढेर है। कx20-RDIKeXXSOKHRESTESAKCEACEAMDAAS YHMEDARDIXIOXXXCODAIEDAXXXXIXESAXERam ICALAMARINEETIRKALEEXXEET मृदु भाषण 1 सत्पुरुषों की वाणी ही वास्तव में सुस्निग्ध होती है क्योंकि वह दयाई कोमल बनावट से खाली होती है। 2 औदार्यमय दान से भी बढ़कर सुन्दर गुण वाणी की मधुरता और दृष्टि की स्निग्धता तथा स्नेहार्द्रता में है। 3 हृदय से निकली हुई मधुर वाणी और ममतामयी स्निग्ध दृष्टि के अन्दर ही धर्म का निवास स्थान है। 14 देखो जो मनुष्य सदा ऐसी वाणी बोलता है कि जो सब हदय को पाल्हादित कर दे उसके पास दुःखों की अभिवृद्धि करने वाली दरिद्रता कभी न आयेगी? ५नम्रता और स्नेहार्ट वक्तृता चस केवल ये ही मनुष्य के म आभूपण है और कोई नहीं /

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