Book Title: Jain Dharm Shikshavali Part 08
Author(s): Atmaramji Maharaj
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Page 206
________________ MAIL. ARIANTRAMEx-xx.xxxADXXKARKI ( 167 ) 3 एक श्रादमी खूब पढ़ा लिखा और चतुर है और दूसरों का गुरु है, मगर फिर भी वह इन्द्रिय-लिप्सा का दास चना रहता है-उस से बढ़ कर मूर्ख और कोई नहीं है। ४अगर मूर्ख को इत्तफाक से वहुत सी दौलत मिल जाय तो ऐरे गैरे अजनबी लोग ही मजे उड़ायेंगे मगर उसके बन्धु बान्धव तो वेचारे भूखों ही मरेंगे। 5 योग्य पुरुषों की समा में किसी मूर्ख मनुष्य का जाना / ठीक वैसा ही है जैसा कि साफ सुथरे पल के ऊपर मैला / पैर रख देना। 6 अकल की गरीवी ही वास्तविक गरीवी है और तरह की गरीबी को दुनियाँ गरीवी ही नहीं समझती। 7 मूर्ख आदमी खुद अपने सर पर जो मुसीवतें लाता है, उसके दुश्मनों के लिये भी उसको वैसी ही मुसीवते पहुँचानी मुश्किल होंगी। 8 क्या तुम यह जानना चाहते हो कि मन्द बुद्धि किसे कहते हैं ? वस उसी अहवारी को जो अपने मन में कहता है कि मैं अक्लमन्द हूँ।। मूर्ख श्रादमी अगर अपने नने वदन को ढकता है तो इस से क्या फायदा, जव कि उसके मन के ऐय ढंके हुए नहीं हैं ? 10 देखो जो आदमी न तो खुद भला बुरा पहचानता है और न दूसरों की सलाह मानता है, वह अपनी जिन्दगी भर A अपने साथियों के लिये दुखदायी बना रहता है। इति / Army

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