Book Title: Jain Dharm Shikshavali Part 08
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: 

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Page 198
________________ PEAKERAYImxKRITIEAXSAXEXXEKLY अपने पाचरण की खूब देख रेख रक्खो क्योंकि तुम / जहा चाहो खोजो सदाचार से बढ़ कर पका दोस्त कहीं नहीं - पा सकते। . 3 सदा सम्मानित परिवार को प्रकट करता है,मगर दुरा चार मनुष्य को कमीनों में जा विठाता है। वेद भी अगर विस्मृत हो जाएँ तो फिर याद कर लिये जा सकते है मगर सदाचार से यदि एकवार भी मनुष्य स्खलित / हो गया तो सदा के लिये अपने स्थान से भ्रष्ट हो जाता है। 5 सुख समृद्धि ईर्ष्या करने वालों के लिये नहीं है ठीक * इसी तरह गौरव दुराचारियों के लिये नहीं है। 6 दृढ़प्रतिक्ष सदाचार से स्खलित नहीं होते क्योंकि वे जानते हैं कि इस प्रकार के स्खलन से कितनी आपत्तियाँ भाती हैं। 7 मनुष्य समाज में सदाचारी मनुष्य का सम्मान होता है लेकिन जो लोग सन्मार्ग से बहक जाते हैं बदनामी और घेइजती ही उन्हें नशीच होती है। सदाचार सुख सम्पत्ति का बीज बोता है मगर दुष्ट प्रवृत्ति असीम असीम आपत्तियों की जननी है।। वाहियात और गन्दे शब्द भूल कर भी शरीफ श्राद्मी की जुयान से नहीं निकलेंगे। 10 मूखों को और जो चाहो तुम सिखा सकते हो मगर सदा सन्मार्ग पर चलना वे कमी नहीं सीख सकते। REAKERXXXREKXKRISKARXComixer TARATEEKREETERES mun .

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