Book Title: Jain Dharm Shikshavali Part 08
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: 

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Page 197
________________ म्ससामानna AP ILZEEC49GEBEGAGGEA. नावमन करता मेपा और मम्पसरी नियामते उस मिटेगी। जिस ने अपनी इमा को जीत सिपा और शो अपने तम्प से विपरित नहीं होता रस की भाति पहा से भी बाफर रोबोदराबवासी होती है। ममता समीको सोती। मगर बामपनी पूरी शान साप अमीरों में ही चमची है। मो मनुप्प अपनी इन्द्रियो को पसी राप्रपमे में बींचर रमवासिस सराफामा अपने हाथ पर हो नींच पर मीतर कृपा सेवापस अपने समस्त प्रामामी सम्मोसिसमाना ममा कर स्वाहै। और किसी कोबारे तुम मत पेको मगर अपनी पूपाम: को मगाम दोपपौकिमगाम की पान पास पुल पेशी।। 8 मगर तुम्हारे पाप से भी किसी को पीका पाँचती तो तुम अपनी सब मेसी नए सममो। भाग का असा मा वो समय पाकर अप्पा हा साता मगर पान का बगाइमा सम्म सबारा बना रखा है। 1. उस माप को देमो जिसमे दिपा पीर पुरि माप्त / कर ली है जिसकामन शाम्त और पूर्यता बरा में पार्मिकता और मेकी रसका न करने पेस पर में माती। सदाचार निस ममुप्प का भावरष पषित समीरसहीत करते समय सदाचार को माग से पाकर समयमा

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