Book Title: Jain Dharm Shikshavali Part 08
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: 

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Page 203
________________ SEEEEEE FHarue. न २२गो यो पुरुप परसे भारमियों की जांच किये बिना ही उनको मिपमा सेतापाप्रपने घर पर ऐसी माफतियों को लावाकियो सिर्फ उसकी मौत केसायही समाप्त होगी। पिस मनुष्य को तुम अपना पोस्त बमामा पाते हो उसककह का उसके गुण दोपों का जीन लोग उसके - साधीभीर किन किन साप रसमा सम्प नसब | पातो का प्रणीतरासे विचार कर होभीर सके पार यदि यह योग्य हो तो उसे दोस्त बना सो।। देखो मिस पुरप का सम्म रस हस में मारेभीर जोरजती से सरता रसके साथ मावश्यकता पड़े तो मम्प रेकर मी बस्ती करनी चाहिये। ५ऐसे लोगों को लोगोभीर समसाप दोस्ती करो कि ] यो सम्मार्ग को मानते हैं और तुमारे पर जाने पर तुम / मिडकर तुम्हारी भर्समा कर सकते। सभापति में मी एक गुण सापक पैमाना है जिससे / तुम अपन मित्रों को भाप सन्तेको। निसार मनुप्प र सरम इप्सी में है कि पानी से मित्रता न करे। पेस पिचारों को मत प्राने दो मिनसे मन सोसार और पारो और न एसेमोगों से दोस्ती करोगे वास परतही तुम्हाप साप दोरगे। सोसागमुसीबतोपासात उनको मित्रता बीयार मौत पर भी रिस में असम पैदा करेगी। सSABRE

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