Book Title: Jain Dharm Shikshavali Part 08
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: 

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Page 199
________________ कानमन्मलानमाला ( 1. ) 1 शान्तिपूर्वक पुरसान करना और जीप हिंसा , करमा बस इमी में तपस्पा का समस्त सारी। 2 तपस्पा तेजस्वी लोगों क सिपीसरे सोगों का र तप करमाकार। सपस्तियों को बिसाने पिलाने मोर सनकी सेवा राम करने के लिये पुष गोग होने चाहि पा इमी पियार से, पाकी लोग तप करना मूम गरे। परि तुम अपने मोहानाय करमा और नसोगों को उसत बनामा पारवे दोनो तुम प्यार करते है तो ग्राम रक्यो किया कि तप में है। नप समस्त कामनामों को यषेप रूप में पूरी कर देता स लिये मोग पुनिया म तपस्पा कसिय सयोग रते। मोगमपारही हो सासर में मरमा * मला परत पाकी सब तो लालसा में फंस हुए। और , मपम को पाल रामि दीपपात है। + सामे पो सिम माग में पिमनाते जितनी : पाया सरपोती सोने का रा रतनारी पारा तेज मि करता है ठीक इसी तप तपस्वी जितनी की मुसीबत : साना उसकी प्रति उतभी दीपिकनियमामी मरेको शिसन भपन पर प्रभुत्व ग्राम पर मिपा उस , एमपोत्तम का ममी साग पूजत। इना जिनसागा मनपरात चोर मिति पर - कामी मृत्यु का जीवन में भी मफल दामन FFIEDEOSITIEEELF R

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