Book Title: Jain Dharm Shikshavali Part 08
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: 

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Page 187
________________ - 11- ICE स्नाना-नाpaaE ( 178 ) वत् किमपरप पत्र नाश्पयन विनयो का 110 मथ-पा प्रपत्य दरी पपा है जो न तो विवाद और : - म विनयशीसदी। सकिशानं यत्र मदेना पवा पिचस्य 111 अर्थ-पापान ही पपा है जिसके पड़ने से पितको मद स भाइसता हो जाप / सरिक सौमन्प यत्र परोपे पिगुनमायः 112 अर्थ-पा मसमता ही क्या है जिसमें परोप में पुगती - की जाती है। मा किं भीपया न सन्तोपः सस्पुमायाम् 113 मर्थ-पासमी क्या है जिसकी प्राप्ति में संतोषनहीं होता मर्यात शासच से भीर मी तुम्न होता। सर्तिकस्य पत्रोग्रुिपस्तस्य 114 मर्प-पा उपकार ही पा जिसके फस की बात। मर्यात् सिम पर उपकार पिपा गया रमी से उसके फलपी बाारखी सापे तो पिर पर उपकार की पारे। उपस्प मुझमायोऽमिनातीनाम् 115 अर्थ- कुलीन पुरष म्पकार परक मूहोगाते हैं। परदोषभवसे बघिरमारा सत्पुरुपायाम् 116 / / ई-परदोष भषण करने में मापुरुपों का पिर होता है। न परकत्तप्रदर्शने अन्यमापो महामारपानाम् 117 13-9 ASTE 3x aurat

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