Book Title: Jain Dharm Shikshavali Part 08
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: 

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Page 185
________________ GOLDGIIGESED BEECEEECEBIEDOGIC न भयेपु विपादः प्रतीकारः फिन्तु पर्यावलम्पनम् 65 भय-मपसमप चित्त का विपाद उपकारकी होता किन्तु धैर्य धारण करना ही उपकारक रोगा। शनुवापि सामान पयितम्पम् 66 अर्थ-धुनों के मी शुम पापोहए तृपित म पर चाहिए। / स किं पुरुषो योऽकिंचना सन् फरोति सियामि / सापम् 67 अर्थ-पापा पुरुषो सपा धनहीन होने पर विषपामिलाप करता है। न ते मृता पेषामिहास्ति शास्ससी पनि 68 अर्थ- मृत म जानम पारिप, जिन की शास्वती कीर्ति इस जगत् म नियमाम है। श्रीएपपरप मर्वप्पानि माता पसप्रमप्राप्तम्यपहारावि पापस्पानि 88 भर्थ--माता जी मोर पाप सन्तान- तीन अपरप मरण करन पोम्प होते। स कि प्रयी कार्पकाले एव न सम्मावपति मृत्पान् 100 प्रव-पापा प्रमुखोपाम के ममप अपने पापो को प्रमप नहीं करता। म कि मृस्य मसाबा या कापमपिरपाप पापते 1.1 FISO E

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