Book Title: Jain Dharm Shikshavali Part 08
Author(s): Atmaramji Maharaj
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Page 184
________________ IANS ECTREAT MERICA ( 175 ) कलत्रं रूपवत् सुभगमनवद्याचारमपत्यवदिति महतः पुण्यस्य फलम् 88 अर्थ-रूपवती, सौभाग्यशालिनी, सदाचारिणी (पतिवता) भार पुत्रवती स्त्री महान् पुण्य का फल है / न खलु कपिः शिक्षाशतेनापि चापल्पं परिहरति 86 अर्थ-सैकड़ों शिक्षाओं से भी वन्दर अपनी चपलता नहीं छोड़ता। अव्यायामशीलेषु कुतोऽग्निदीपनमुत्साहो देहदाय च 60 अर्थ-जो व्यायामशील नहीं है, उन के अग्निं दीपन, 7 पात्मिक उत्साह, और शरीर की दृढ़ता कहां से उत्पन्न हो लोभप्रमादविश्वासैर्वृहस्पतिपुरुपो वध्यते चञ्चयते वा 61 अर्थ-लोम, प्रमाद और विश्वास से वृहस्पति के समान पुरुष भी बंधा जाता है वा छला जाता है। आतः सर्वोऽपि भवति धर्मवुद्धिः 62 अर्थ-व्याधि वाले सब ही धर्म वुद्धि पाल वन जाते हैं। __ व्याधिग्रस्तस्य ऋते धैर्यान्न परमौषधमस्ति 63 - अर्थ-रोगी को धैर्य के सिवाय अन्य कोई परम औषध नहीं है। .. स महाभागो यस्य न दुरपवादोहतं जन्म 64 अर्थ-वह महाभाग वाला है, जिस का जन्म कलकित / नहीं था।

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