Book Title: Jain Dharm Shikshavali Part 08
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: 

View full book text
Previous | Next

Page 190
________________ ---- - - -NAM ALS . A C . तेरहवाँ पाठ PoraRIXXRXXXKAHANE (शिक्षा विषय) प्रिय पाठको! मनुष्य का जीवन शिक्षा पर ही निर्भर है। प्रायः जिस प्रकार की शिक्षा मनुष्य को मिलती है उसका जन्म उसी ढांचे में ढल जाता है। इसी लिए धार्मिक पाठशालाओं की अत्यन्त आवश्यकता है जिनसे धार्मिक शिक्षाएँ उपलब्ध हो सकें। आधुनिक शिक्षा त्याग के स्थान पर स्वच्छ। न्दता की ओर विशेषतया ले जाती हैं इसी लिए देश की दशा विचारणीय हो रही है / जव देश अपनी निज स्थिति पर नहीं रहा तो फिर धर्म विषय का कहना ही क्या है ? अत. प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है कि वह अपने जीवन को धार्मिक शिक्षाओं से विभूषित करने की चेष्टा करे। अव प्रश्न यह उपस्थित होता है कि धार्मिक शिक्षा किसे कहते हैं ? इस प्रश्न के उत्तर में कहा जाता है कि धार्मिक शिक्षाएँ उनका नाम है जिनसे न्याय पूर्वकर्ताव किया जाए। श्रत ये धार्मिक शिक्षाएँ साधु धर्म और गृहस्थ धर्म दोनों से सम्बन्ध रखती है। अतः अपने अपने धर्मानुकूल दोनों के लिये वे शिक्षाएँ उपादेय हैं। प्रय विद्यार्थियों के लिये इस पाठ में-सस्ता साहित्य A प्रकाशक मंडल अजमेरसे मुद्रित “तामिल घेद" नामक पुस्तक

Loading...

Page Navigation
1 ... 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206