________________ AEXTRARom Times R e adewcXICAEXEDXSEEDKAR ARRIORRERATEEXXX (141 ) पाग कर जीवन रक्षा।पयोंकि वास्तव में वही जीवन श्रेष्ठ घमपूर्वक हो। परच जो धर्म से रहित जीवन है वह काम का जीवन नहीं है। अत. अापत्ति काल के प्राजाने पसमा धर्मात्माओं को योग्य है कि वे जीवनोत्सर्ग करके भी मका रक्षा करें जिससे फिर धर्म उनकी रक्षा कर सके और लोगों के लिए श्रादर्श वन सके / शिष्य-हे भगवन् ! धर्मरूपी मदिर में प्रविष्ट होने के लिये कौन कौन से मार्ग हैं? गुरु-हे शिष्य ! धर्मरूपी मन्दिर में प्रविष्ट होने के लिये पार मागे है। जैसे कि-१क्षमा 2 निलामता ३ाजेय भाव भार 4 सकोमल भाव (मादववृत्ति)। इन चारों कारणों स धर्मरूपी मन्दिर में सुखपूर्वक प्रविष्ट हो सकते हो। शिष्य हेभगवन् ! उक्त चारों मार्गों का ज्ञान किस प्रकार से हो सकता है ? / / गुरु-हे शिष्य / शिक्षा द्वारा।। 2 शिष्य-हे भगवन् ! शिक्षा कितने प्रकार से वर्णन की गई है? गुरु- हे शिष्य ! शिक्षा दो प्रकार से प्रतिपादन की गइ है। / जैसे कि 1 ग्रहण शिक्षा और 2 श्रासेवन शिक्षा ग्रहण शिक्षा से यद,जानना चाहिए कि विधिपूर्वक पठन और पाठनादि क्रियाएँ की जाय / पासवन शिता का यह मन्तव्य है कि जिस प्रकार शास्त्रों के स्वाध्याय से धार्मिक क्रिया कलाप जाने जायें, फिर उसको उसी प्रकार निज काय द्वारा श्राचरित करना चाहिए। -