________________ XxRAT AIRaaramaraGRAH ( 157 ) शिष्य-हे भगवन् ! 1 ज्ञानावरणीय 2 दर्शनावरणीय 3 वदनीय 4 मोहनीय 5 आयुष 6 नाम 7 गोत्र और 8 अतः राय-इन कर्मों की मूल प्रकृतियों में कितने वर्णादि है? गुरुहे शिष्य ! उक्त आठों प्रकार की कौ की मूल प्रतियों में पाच वर्ण, पांच रस, दो गंध और चार स्पर्श होते है। शिष्य हे भगवन् ! जीव के कृष्ण लेश्या, नील लेश्या, कापोत लेश्या, तेजो लेश्या, पन लेश्या और शुक्ल लेश्या इन छः प्रकार के परिणामों में कितने वर्णादि होते हैं ? र गुरु-हे शिष्य ! कृष्णादि छनों द्रव्य लेश्याओं में 5 वर्ण ५रस 2 गध और स्पर्श होते हैं। किन्तु जो छ भाव लेश्याएँ है वे अरूपी है, कारण कि चे जीव ही के परिणाम विशेष होते है। किन्तु जो कृष्णादि छः द्रव्य लेश्याएँ हैं, वे अनंत प्रदेशी स्थूल स्कंध होने से आठ स्पर्श वाली कथन की गई है। कृष्ण, नील और कापोत -ये तीन अशुभ लेश्याएँ हैं। तेजो, म पन और शुक्ल-ये तीन शुभ लेश्याएँ है। पहली तीन अधर्म लेश्याएँ है और पिछली तीन शुभ लेश्याएँ हैं। पिछली तीनों को धर्म लेश्या भी कहते हैं। ये सब लेश्याएँ कर्म और योग के सम्बन्ध से ही जीव के परिणाम विशेष हैं। शिप्य हे भगवन् ! सम्यग्दृष्ट 1 मिथ्यादृष्ट 2 मिथदृष्ट 3, / चतुर्दर्शन 1 अचक्षुर्दर्शन 2 अवधिदर्शन 3 और केवलदर्शन 4, // श्राभिनिवोधिक ज्ञान 1 श्रुत क्षान 2 अवधि ज्ञान 3 मन. पर्यवशान 4 और केवल ज्ञान 5, मति अज्ञान 1 श्रुत अक्षान 2 Mal और विभग अशान 3, श्राहार संक्षा 1 मय संशा 2 मथुन TEX T ENTtFormswam-~ - -..----- PXXXXCXXEX KORXXKAREERXXX XE= xxciax=c-xa-ri-xe-2 -2 Lever