________________ पEXEEXIxx .nnn..... FORX n XEXARIयासासाग--8- EXAXAXXXXXXXXXXXX अब इस पाठ में "नीतिवाक्यामृत" नामक जैन नीति लकुछ सून उद्धृत कर के उनकी हिन्दी की जाती है, लस विद्यार्थियों को नीतिशास्त्र का भी कुछ बोध होजाए / यतोऽभ्युदयनिःश्रेयससिद्धिः स धर्मः 1 अर्थ-जिससे स्वर्ग और मोक्ष की प्राप्ति होती है, वही धर्म है। __ अधर्मः पुनरेतद्विपरीतफलः 2 अर्थ-श्रधर्म उसका नाम है, जिससे स्वर्ग वा मोक्ष प्राप्त न हो सके अर्थात् धर्म से विपरीत अधर्म होता है। श्रात्मवत परत्र कुशलवृत्तिाचन्तनं शक्तितस्त्यागतपसी च धर्माधिगमोपायाः 3 / / ____ अर्थ--अपने आत्मा के समान पर को जानना, कुशल वृत्तियों का चिंतन करना, शक्ति के अनुसार दान करना और शक्ति के अनुसार ही तप करना-ये ही धर्म जानने के उपाय हैं। सर्वसत्वेषु हि समता सर्वाचरणानां परमाचरणम् 4 __अर्थ--प्राणिमात्र से निर्वैरता धारण करना-यही परमा. चरण है। न खलु भूतद्रुहां कापि क्रिया प्रसूते श्रेयांसि 5 अर्थ-जीवों की हिंसा करने वाली क्रिया कभी भी कल्याण उत्पन्न करने वाली नहीं होती / श्रत किसी भी al जीव की हिंसा नहीं करनी चाहिए। -. - -...---- - - XIX E AXnxxHDXXCOXXCORYXXXXXXXKARERAREENA