Book Title: Jain Dharm Shikshavali Part 08
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: 

View full book text
Previous | Next

Page 181
________________ RUE स्मा -SERE : नाम- TERMix ग उत्सेको स्वगतमपि कार्य विनाशयति 70 मर्प-मईकारी पुष इस्तगत ए कार्य को भी ना देवा। यामा बापो पालादपि ग्रहीयास 71 - अर्थ-परि मास मी युषित वचन को तो गरें मी। प्रहप कर सेमा चाहिए। रखेरविपये किम दीपा प्रकाशयवि 72 मर्प-पपा सूर्य मस्त बोबाने पर पीपक काम नहीं करता। अबश्य करता है। पिम्पायता प्रदीपस्पेष नयहीनस्य द्विा 73, मर्प-मम्पाप से उत्पम किये प. पन पाहे की पुमत इप दीपक की मांति माननी चाहिए। नारिचार्य किमपि कार्यपात 75 मर्प-बिना पिपारे कोई भी पान करना चाहिए। पार्मिक साचारामिवनपिगमा प्रतापवाभपानुगत चिम सामी 75 अर्प-पार्मिर, ऊमीन सदाचारी प्रतापी मीर पाप पति पासा स्वामी रो सकता। कोपप्रसादयोः स्वतंत्रता मारमाविशपार्दर्न वा / पस्पास्ति स स्वामी अर्थ-कोप और प्रसार में स्पतंत्रता भीर भारमा का भतिशप मिसका पासा पदी स्वामी गोमाजात 3 URGER -- / X

Loading...

Page Navigation
1 ... 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206