Book Title: Jain Dharm Shikshavali Part 08
Author(s): Atmaramji Maharaj
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Page 172
________________ PHOTO TAKCHITRAKAXXSameerane KERAYAT ( 163 ) कालेन संचीयमानः परमाणुरपि जायते मेरुः 11 अर्थ-दिनरात्रि परमाणु 2 एकत्र करते हुए उनकी मेरु समान राशि हो जाती है। इसी प्रकार पुण्य और पार तथा विद्या सचय करते हुए बढ़ जाती है। कण्ठगतैरपि प्राणैर्नाशुभं कर्म समाचरणीयं कुशलमतिभिः 12 / अर्थ-चे ही व्यक्ति कुशल भति वाले हैं जो प्राणों के कण्ठ तक श्राजाने पर भी अशुभ कर्मों का पाचरण नहीं करते।। खलसङ्गेन किं नाम न भवत्यनिष्टम् 13 . श्रर्य-दुष्टों के संग करने से किस अनिष्ट की प्राप्ति नहीं होती ? अपितु सब प्रकार के अनिष्यों को प्राप्ति होजाती है। अग्निरिव स्वाश्रयमेव दहन्ति दुर्जनाः 14 श्रर्थ-दुर्जन निज श्राश्रय को ही नाश करते है जैसे फि अग्निजिस काष्ठ से उत्पन्न होता है उसी को ही दग्ध कर देता है। यतः सर्वप्रयोजनसिद्धिः सोऽर्थः 15 ___ अर्थ-जिससे सर्व प्रयोजन की सिद्धि हो वही अर्थ है / अर्थात् धन द्वारा प्राय' समस्त सासारिक कार्यों की सिद्धि हो जाती है। धर्मार्थाविरोधेन कामं सेवेत ततः सुखी स्यात् 16 अर्थ-जो धर्म और अर्थ के विरोध माव से काम को / सेवन करता है, यही सुस्त्री होता है अर्थात् जो स्वदाग सनोप व्रत वाला होता है, वही जन सुखी है / REAKIxxxxxxxxxxxX SEKKAKE-xxxxects .

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