Book Title: Jain Dharm Shikshavali Part 08
Author(s): Atmaramji Maharaj
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Page 171
________________ नर-नलमा PiDFPERFEADSEEDDEE ___ मस्मनि हुदमिवापामर्थम्पयः 6 मर्य--मपात्र में भर्प म्पप (राम) रमा ऐसा होता है। सा मस्म (राज) में पन (हाम)। / पात्रं प पिनिय धर्मपात्र कार्यपात्रे मामपा पति 7 मर्प-धर्मपाल कामपाम भीरमापार-पेशीन मकार के पात्र होते हैं। धर्म कापों में अर्थ म्पप परमा-उसे धर्म पान कसे मीभार के लिये भर्य म्पप करना उसी का पम काम पामरे भीर इस संसार प्रमोशन सिर करने केसिपे अर्थ म्पप परमा - उसी का नाम का पात्र सखल मुम्मो सस्म पिनियोगादारमना सरसन्मान्तरे। नपस्पर्षम् - मर्पवास्तव में सोमी पारी मो सुपाम में दान पिता करता है। स्पोंकिपादान परमोफ में भी पुल पर होता है।मता मोमी पपीबोसम्मान्तर रेसिपे मी से पपा / मत्पुत जो सोमी है पातो मर कर यहाँ पर दीपन बोर: गया पासोमी केले! सदैव स्विवानों को नाम पाह __ अर्प-सदैव पारिद्रम से पपभूत म्पमिपी का कौन साधु है!कोई भी नहीं। इन्द्रियमनसोनियमानुष्ठान पपा 1. अर्थ-इन्द्रिय मीर मन का मिमा परमादी पास जात. -caIFFERE

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