________________ ENTERTAmxamin AKERATRIKASHY KAIMohrs( 155 ) पहा से विशिष्ट योध का नाम श्रयाय है और अपाय से विशिष्ट शान का नाम धारणा है। शिष्य हे भगवन् ! कोई दृष्टान्त देकर इनके अर्थ को स्पष्ट करके समझाइए। rransmeEAMERICSILPEPREE. गुरु-हे शिष्य !जिस प्रकार कोई व्यक्ति सोया हुश्रा है, जब { उसे शब्द द्वारा जागृत करता है, तब वह निद्रा के श्रावेश पद को न पहचानता हुश्रा भी हुंकार करता है, इसी को वग्रह कहते है / जव वह अवग्रह शान से ईहा ज्ञान में / प्रविष्ट होता है तब वह शब्द की परीक्षा करता है कि यह / शब्द किसका है ? जव फिर वह ईहा से अवाय ज्ञान में जाता है तव वह 'यह अमुक व्यक्ति का शब्द है' इस प्रकार भली भांति जान लेता है। जब उसने शब्द को भली भॉति अवगत कर लिया तब फिर वह उस शब्द के ज्ञान को धारण करता है कि इसने किस कार्य के लिये मुझे जगाया है और यह अमुक कार्य मेरे अवश्य करणीय है। इसी का नाम धारणा है। श्रव ग्रह और ईहा अनाफारोपयुक्त कहे जाते हैं / अवाय और Aधारणा साफारोपयुक्त कहे जाते हैं / अवग्रह और ईहा सामान्य बोध तथा श्रषाय और धारणा विशिष्ट घोध के नाम से कहे जाते है अथवा अवग्रह और ईहा दर्शन के नाम / से तथा अवाय और धारणा शान के नाम से कहे जाते हैं। / जीय गुण होने से य सब अरूपी हैं। . शिष्य - हे भगवन् ! उत्थान कर्म यल वीर्य और पुरुषार्थ। ये रूपी है घा अम्पी ? गुम-हे शिप्य ' जीव गुण होने से ये सव श्ररूपी है।। SXEXPANORastraamYEAXE