Book Title: Jain Dharm Shikshavali Part 08
Author(s): Atmaramji Maharaj
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Page 161
________________ . . .. . SAZUGSBEIDE ( 152 ) पकारी माना गपा प्रतापक पद पुक्तियुको। शिप्प-रे मगवन् ! सब समकार से तो भारत U प्राचार्य उपाध्याय और सापुती उपदेशों मारा स्थान पर उपदेश कर ससिपे सव से पासे'नमोहोर सम्पसापे पर परोना चाहिए था। गुर-शिम्प ! भाचार्य रुपाण्याप और सापु-ये तीनों - पद पदापों के स्वर्प रणम्त नहीं कि भीमगवारकपन पिप पदापों के सपरेरा (मचाफ) सलिये सब से पहले 'नमो मतिता पही पर पड़ना पुहिसंगत है। शिप-मगवम् ! रिसा अड, बोरी मैथुन भीर परिमा इन पांच मामयों करते समप गोमारम प्रदेशों पर परमाए पुससम्बन्म करते समस्त प्रवेशीसम्पापीयामापी गुरु-शिम्प ! पांच मामलों के मासेवन करते समय / यो मारम प्रदेशों पर फर्म वर्गखामों का सम्पम्प रोता है फर्म परीणामोअनंत मदेशी परमाशुभ साप रूपी होते मापी। शिप-2 मगर पी किसे करते। भीर भबपी E किसे काते। गुरु-रे शिप्प / जिसमें पुनसास्ति काप का सम्पम्प बाकेबल पुगसो रसीको सपी काते पॉलिरुपी पपम करने का वास्तव में पही मन्तम्प मिस पसा में वर्ग इस गरीर स्पर्शो पसीको पीकातेापा पांच भामचों से प्राम प पुस म गुण पालेदोसलिये - उनको पपी माना गया है। Sears-- -- 1. - -- -

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