Book Title: Jain Dharm Shikshavali Part 08
Author(s): Atmaramji Maharaj
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Page 154
________________ HEERAYERATEMENT KEEKEXREMEERIEEEEXexee NEPALI COMXNXSETTEERTRA ( 145 ) गुरु-धर्य वाली मति के धारण करने से अदैन्य गुण की माप्त हो जाती है, उत्साह, गांभीर्यभाव, सहन शीलता जात है, जिस से फिर वह व्यक्ति कठिनतर कार्य i"."चनममी अपना सामर्थ्य उत्पन्न कर लेता है। इतना ही किन्तु उसके प्रात्मा पर हर्प और शोकादि के कारणों विशप प्रभाव नहीं पड़ सकता / श्रतः उसका श्रात्मा श्रकपन शील हो जाता है। शिष्यसवेग धारण करने से किस फल कीप्राप्ति होतीहै? गुरु-वैराग्य के धारण करने से मोक्षामिलाप बढ़ जाता है, कलासारिक पदार्थों से उदासीन भाव पा जाता है और चित्त / म अनित्य भावना का निवास हो जाने से प्रात्मा निज स्वरूप [ की खोज में ही लग जाता है। शिष्य-हे भगवन् ! प्रणिधि शब्द का क्या अर्थ है ? गुरु हे शिष्य ! प्रणिधि शब्द का अर्थ है कि माया शल्य न करना चाहिए अर्थात् धर्मात्माओं से कदापि छल न करना चाहिए। शिष्य हे भगवन् ! 'सुविहि' शब्द का क्या अर्थ है ? गुरु-हे शिष्य ! सुविहि शब्द का अर्थ है कि सदनुष्ठान करना चाहिए / अर्थात् प्रत्येक व्यक्ति को योग्य है कि वह सदनुष्ठान (श्रेष्ठाचरण) द्वारा ही अपना जीवन व्यतीत करे। शिष्य हे भगवन् ! संवर करने से फिस गुण की प्राप्ति होती है ? गुरु-हे शिप्य सवर करने से कर्म आने के प्रास्त्रयों मागौं) / / का मती माति निरोध किया जाता है। REATRAKESREXCEXXCEAKIED KAREEK TRANSOJA

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