________________ -LATERAS X XXXXREEL. ( 115 ) - बुद्धिपूर्वक परीक्षा होनी चाहिए / वास्तव में सम्यग् दर्शन, सम्यग् शान और सम्यग चारित्र रूप ही धर्म श्रात्मा को आत्मिक सुख प्राप्त कराने वाला है। धर्म के श्राश्रित होकर ही जीवन व्यतीत करना चाहिए, जिस से अक्षय अानन्द की प्राप्ति हा सके / इस प्रकार 12 अनुप्रेक्षाओं द्वारा पण्डित को वीर्य के साथ कर्म क्षय करने चाहिएँ / यदि ऐसे कहा जाए कि ये तो कसमझा गया है कि इस प्रकार की अनुप्रेक्षाद्वारा कर्म क्षय किये जा सकते हैं किन्तु वह ध्यान कौन सा है जिस से कर्म क्षय किये जा सकते हैं ? इस प्रश्न के समाधान में कहा जाता प्र है कि मैत्री, प्रमोद, कारुण्य और माध्यस्थ भावनाओं द्वारा न पहले मन की शुद्धि कर लेनी चाहिए क्योंकि मन करण है जो कर्ता की क्रिया में सहायक बनता है / जिस प्रकार शीत, स्वच्छ, निर्मल, और मधुर जल प्यास को वुझाने में समर्थ होता है ठीक उसी प्रकार स्वच्छ और निर्मल मन भी समाधि a क्रिया में सहायक वनता है / जिस प्रकार जल में लवण लीन हो जाता है उसी प्रकार स्वच्छ मन भी समाधि में लीन हो जाता है। कारण कि मन का निरोध करने से फिर सव पदार्थों का निरोध किया जा सकता है अर्थात् जिस ने मन को वश किया उस ने सब को वश कर लिया। मन की शुद्धि किये जाने पर फिर सव कलंक दूर हो जाते हैं क्योंकि जब मन राग और द्वेप में प्रवृत्त नहीं होगा तय फिर वह अपने स्वरूप में ही लीन हो जायगा / अत ध्यान धाले पुरुष को / योग्य है कि वह सय से पहले मन पर विजय प्राप्त करे जिस से फिर उस के अन्त करण में समता भाव का संचार हो Sermswaromanswww ..wireTRAR DIREXITERARExerence KoxxxAYEXXXXIGERATIXIISE