________________ Lexicxxxxe PATELaxmaya.IMATLADY TEXA ( 113 ) अतः इन से निवृत्त होने के उपायों का अन्वेपण करना चाहिए। ८संवरानुप्रेक्षा--जिन जिन मार्गों से कर्म आते थे, उन उन मार्गों के सम्यग् चारित्र द्वारा निरोध करने को सवरानुप्रेक्षा कहते है / जैसे कि एक के लिखे विना विन्दु शून्य होते हैं, सूर्य के विना नेत्र कुछ काम नहीं कर सकते, जल वा प्रकाश के विना कृषक कुछ काम नहीं कर सकते, इसी प्रकार / सम्यक्त्व के विना विपुल तप भी कार्य साधक नहीं होता / a वह धन किसी काम का नहीं जिस से सुख की प्राप्ति नहीं होती, वह सुख भी किसी काम का नहीं जिस के मिलने पर ! संतोष नहीं आता, वह संतोष भी प्रशंसनीय नहीं है जिस से बत धारण नहीं किये गए और वह व्रत भी श्रेष्ठ नहीं है जिसका मूल सम्यक्त्व नहीं है / इसलिये प्रत्येक प्रत का मूल सम्यक्त्व रन है। इसके धारण किये जाने के पश्चात् फिर सर्वव्रती वा al देशव्रती चारित्र धारण करना चाहिए, जिस से कर्म आने के # मार्गों का सर्वथा निरोध किया जा सके। निर्जरानुप्रेक्षा-प्राचीन कर्मों की निर्जरा करनी चाहिए क्योंकि जब तक वे पूर्वकृत कर्म क्षय नहीं किये जा सकेंगे तब तक आत्मा कर्मों से सर्वथा विमुक्त नहीं हो सकता। किन्तु कर्म क्षय करने में सकाम निर्जरा ही सामर्थ्य रखती है नतु अकाम अर्थात् सम्यक्त्व पूर्वक क्रियाएँ ही कर्मक्षय कर सकती हैं नतु मिथ्यात्व पूर्वक / अतएव शानपूर्वक सांयमिक फियाओं द्वारा कर्मक्षय कर देना चाहिए, जिस से आत्मा निर्वाणपद की प्राप्ति कर सके। PoranxxxxxxxXwxxnxxcx Xxxxxxxx Xxxxxxxx