________________ SHREE RExxaxxxxesxexxxxaoranexexe NEERICANTIBICHARIEETराय ( 116 ) पक उपविष्ट व्यक्ति अपने मन को निश्चल कर सकें, योगियों को यही सुन्दर श्रासन स्वीकार करना चाहिए / श्रासन की प्रदता धैर्य और वीर्य पर ही निर्भर है, अत धैर्य और शक्ति / पूरक आसन जमा कर बैठना चाहिए जिससे फिर ध्यान में मुद्रा धारण कर सके। जैसे कि पर्यङ्कदेशमध्यस्थे प्रोत्ताने करकुड्मले / ___ करोत्युत्फुल्लराजीवसनिमे च्युतचापले // 1 // . अर्थ-(पद्मासन बाँधकर) अपनी गोदी के चीच में नाभि / के समीप दोनों करकमलों को निले हुए कमलों के समान उत्तान करके चञ्चलारहित (स्थिर) रक्खे // 1 // नासाग्रदेशविन्यस्ते धत्ते नेत्रेऽतिनिश्चले। प्रसने सौम्यतापने निष्पन्दे मन्दतारके // 2 // अर्थ-जिन की पुतलियाँ (तारक) सौम्यता को लिए हुए स्पन्द रहित प्रसन्न तथा प्रतिनिश्चल हुए हैं, ऐसे दोनों नेत्रों को नासा के अप्रमाग में स्थिर रक्ने ||2|| भ्रूवल्लीविक्रियाहीनं सुश्लिष्टाधरपल्लवम् / सुप्तमत्स्यहदप्रायं विदध्यान्मुखपङ्कजम् // 3 // अर्थ-भौह विल्कुल विकार शून्य हो, दोनों होंठ सुश्लिष्ट अर्थात् न तो स्नुले और न अति मिले हुए रहें, इस प्रकार सोई हुई मछलियों वाले शान्त सरोवर के समान मुख कमल को सुस्थिर रक्ने ||3|| इस प्रकार से ध्यानाकृति किये जाने के अनन्तर ही ध्यान प्रारम्भ करना चाहिए / अव प्रश्न यह उपस्थित होता म