________________ REAKIRAKSHA Kerrmative! KHELKANOXERITAMLEDIA ( 137 ) GEKIKenare mr-I ____ अय-जो मनुष्य के काम भोगों की अथवा परलोक के 6 काम भोगों की इच्छा करता हुश्रा अभिलापा रखत महामोहनीय कर्म को बाधता है। उनतीसवाँ महामोहनाय विषय इटी जूई जसो वएणो देवाणं बलवीरियं / 3 ते सिं अवएणवंवाले महामोहं पकुवइ / / 33 // अर्थ-जो मूढ व्यक्ति देवों कीऋद्धि, द्युति यश, वर्ण तथा स श्रादि की निंदा करता है, वह महामोहनीय कर्म याधता है। तीसवाँ महामोहनीय विषय अपस्समाणो पस्सामि देवे जक्खे य गुज्झगे।। ___ अणाणी जिणपूयट्टी महामोह पकुव्वइ // 34 // अर्थ-जो व्यक्ति देव, यक्ष, गुह्यक श्रादि देवों को न दत्रता हुश्रा भी कहता है कि मैं इन्हें देखता हूं और फिर वह अचानी जिनेन्द्र देव के समान अपनी पूजा की इच्छा रखता है अर्थात् निज पूजार्थी है, वह महामोहनीय कर्म की उपार्जना न करता है। भद्रपुरुषो। इस प्रकार श्रीश्रमण भगवान महावीर स्वामी ने प्रत्येक प्राणी के हित के लिये उक्त स्थानों का वर्णन किया। . इन के द्वारा प्रत्येक प्राणी को स्वकीय कर्तव्यता का भली तभाति बोध हो जाता है। फिर वह अपनी कर्तव्य परायणता -Tal को समझ कर उस में प्रारूद हो सकता है। इन शिक्षाओं में राष्ट्रीय शिक्षाएँ भी कूट कूट कर भरी गई हैं, धार्मिक शिक्षाएं xnxsMEEEXnxneurs RECEXA SXxxHEROXnxg XXX .