________________ EARANTEERXaRrmation MEROERMANAGEMENTERTERECEIXESI ! अर्थ-जो प्राचार्य और उपाध्यायों द्वारा उपरुत किया। / फिर सम्यक्तया उनकी प्रतिपत्ति नहीं करता और उनकी सेवा करता है किन्तु अहकारम भरा रहता है, वह / महामोहनीय कर्म उपार्जन करता है। तेईसवाँ महामोहनीय विषय अबहुस्सुए य जे केई सुएणं पविकत्थई / सज्झायवायं वयइ महामोहं पकुवह // 26 // अर्थ-यदि कोई बहुश्रुत नहीं है किन्तु श्रुत से अपनी आत्मलाघा करता है कि 'मैं बहुश्रुत हूं' और स्वाध्याय विषय वाद करता है कि 'मैं ही शुद्धपाठोच्चारण करने वाला ' वह महामोहनीय कर्म बांधता है। चौवीसवाँ महामोहनीय विषय अतवस्सीए य जे केई नवेण पविकत्थई / सबलोये परे तेणे महामोहं पकुव्वइ // 27 // अर्थ-जो कोई तपस्वी नहीं है किन्तु अपने आपको तपस्दी कहता है, वह सर्घलोक में सय से बढ़कर भाव चोर / है, इस से वह महामोहनीय कर्म बांधता है। पच्चीसवाँ महामोहनीय विषय साहारणहा जे केई गिलाणम्मि उवाहिए। पभूण कुणइ किच्चं मज्झपि से न कुन्वइ / / 28|| सदेनियडीपरणाणे कलुसाउलचेयस / अप्पयो य अवोहीय महामोह पक्कुबइ // 26 // (युग्मम्)। RELIERATAXIANCERCOSMEERARECORRERAKomaa MERRIER