________________ (121 ) करने योग्य होता है उसे ही ध्येय कहते हैं / यह ध्येय दो प्रकार से वर्णन किया गया है जैसे कि चेतन और जड़ चेतन द्रव्य में सभी चेतन ग्राह्य हैं और जड़ में धर्मास्ति काय, अधमोस्ति काय, आकाशास्ति फाय, काल द्रव्य और पुद्गल द्रव्य- इनको भी ध्येय बनाया जाता है। सब स पहले श्रात्मदर्शी बनना चाहिए जिससे सर्व शान की प्राप्ति द्वारा लोकालोक को भली प्रकार देखा जासके। जस कि यह श्रात्मा अजर, अमर, अक्षय, अव्यय, सर्वेश, सर्वदर्शी, झानात्मा से सर्व व्यापक, अनन्त शक्ति वाला और अनन्त गुणों का आकर है। इस प्रकार ध्यान से विचार al करे कि मेरी तो उक्त शक्तियाँ शक्तिरूप हैं किन्तु सिद्ध परमात्मा की ये शक्तियाँ व्यक्तरूप हैं। अणोरपि च यः सूक्ष्मो महानाकाशतोऽपि च / जगद्वन्धः स सिद्धात्मा निष्पन्नोऽत्यन्तनिर्वृतः॥१॥ अर्थ-जो सिद्ध स्वरूप परमाणु से तो सूक्ष्म स्वरूप है और आकाश से भी महान् है, वह अत्यन्त सुखमय, निष्पन्न सिद्धात्मा जगत् के लिए वंदना योग्य है // 1 // इस प्रकार उसके ध्यान मात्र से ही रोग शोक नष्ट हो जाते है हैं तथा उसके जाने विना सव अन्य जानना निरर्थक है / अत. उसी को ध्येय बना कर उसमें ही लीन हो जाना चाहिए / इसलिए यह बात तभी हो सकती है जब श्रात्मा बहिरात्मा अन्तरात्मा और परमात्मा के स्वरूप को भली प्रकार जान ले / जैसे कि श्रात्मा से मिन्न पदार्थों में आत्म बुद्धि का जो होना है PEXXXnxx XXXMRAKARXxxxxxARXXRAxwwXCAREIMEXICAL