________________ AURAXYXYEATEXYXxxRines म MARATERRXKREAMERAXEEKEDARAMAREADमला __ यदि ईश्वर को निमित्त कर्ता माना जाय तव भी वह सिद्ध नहीं होता। कारण कि जब जीव और प्रकृति दोनों अनादि है तो मला फिर कर्ता किसका? यदि ऐसा कहोगे कि जिस प्रकार कुलाल घट का कर्ता होता है यद्यपि मिट्टी कुलाल से प्रथम ही विद्यमान थी तथापि घटाकार हो जाने से फिर घट का कर्ता / कुलाल ही कहा जाता है ठीक इसी प्रकार सूक्ष्म जगत् को स्थूल रूप में लाना, जीवों को कर्मों का फल देना और उन जीवों को वेद द्वारा सत्योपदेश देना, यह ईश्वर का ही व्यापार है / यदि वह इस प्रकार से क्रियाएँ न करे तो फिर उसे मानने की आवश्यकता ही क्या है ? तथा जव जगत् प्रलय रूप में होता है तव तो उस समय सर्व जीवात्मा सूक्ष्मावस्था में वा सुषुप्ति दशा में होते हैं। उन जीवों को जागृतावस्था में लाना यही उस परम दयालु की परम दया लुता है ? / जिस प्रकार डाक्टर लोग आँखों पर आए हुए a मोतियों के पानी को उतार फिर उस अंध प्राणी को संसार के दर्शन कराते हैं ठीक उसी प्रकार परमात्मा भी प्रलय में पड़े हुए जीवों को उठा कर फिर विचित्रमय जगत् के दर्शन कराता है, वश यही उस की दया है ? इसलिए आपका उक्त कथन मी युक्ति शून्य है क्योंकि जय प्रलय काल में जीव श्राप के कथनानुसार सुपुप्ति दशा में शान्तिपूर्वक थे तय आपके माने हुए ईश्वर ने उन चारों को नाना प्रकार के करों में डाल a दिया, गर्भावास में उनको नाना प्रकार के कष्ट भोगने के लिये स्थापन कर दिया, फिर उन जीवों को हिंसा, भूठ, चोरी, मैथुन, क्रीड़ा और परिग्रह के जाल में ईश्वर की दया ने डाल XXEEXMEXICAXIRAY Tarw: PRIORamitaxxxxante-XKORKEEOXxxmaxonxxx