________________ दशवासी वोलते थे? तव यह शंका उत्पन्न होती है कि यह कथन असभव प्रतीत होता है उन देशों में वैदिक संस्कृत तो दूर रही / किन्तु लोग संस्कृत का नाम भी नहीं जानते / संस्कृत शब्द का यह अर्थ होता है कि संमार्जन किया हुआ। तब यह शंका उत्पन्न होती है कि उन युवकों ने किस भाषा में से वैदिक सस्कृत समार्जन किया था क्योंकि घेतो वर्षा ऋतु में होने वाले मेंढकों की भॉति उत्पन्न होते ही बोलने लग गए थे ? श्रत. ये सब कथन स्वकपोल कल्पित होने से असत्य है। पूर्वपक्ष-यदि ईश्वर सृष्टि न रचे तो जीवों के शुभाशुभ कर्मों का फल उन के भोगने में किस प्रकारसे पा सकता है? उत्तरपक्ष-यदि ईश्वर जीवों के कर्मों का फल न भुक्ताचे तो ईश्वर की क्या हानि है ? क्योंकि श्राप के मतानुसार जीव स्वयं तो फर्मों के फल भोग सकते ही नहीं? और फिर ईश्वर सृष्टि की रचना ही न करे तब तो बहुत ही अच्छा हो जाय क्योंकि न तो जीव पूर्व कर्मों के फल भोगे और न नवीन शुभाशुभ कर्म आगे को करें, वे सदैव प्रलय दशा में ही श्रानन्द का अनुभव करते रहे / क्योंकि उपनिपदों में लिखा है कि सुषुप्ति में श्रात्मा ब्रह्म में लय हो के परमानन्द M को भोगता है। जव सुपुप्ति में यह दशा है तो फिर प्रलय रूप महा सुपुप्ति में तो परमानन्द का कहना ही क्या है ? तथा एस से तो यह भी सिद्ध होता है कि जब ईश्वर सृष्टि की रचना करता है ? तव जीवों के परमानन्द का नाश करता है है। जय प्रश्न यह उपस्थित होता है तो फिर ईश्वर सृष्टि a रचता ही क्यों है? KAXXXCXXCXXC-IKASXXEXOMICRORATEXCELEEL - IPRITES