________________ शिमला AYO नाrinicXxSEXMICROICEORAKHotkomleMLAL ADYATRaxararmarxxxx ( 101 ) कारण से मृत्यु होजाना, वालकपन के रोगादि के दु.खों का / अनुभव करना--इत्यादि दु.खों का अनुभव करना ये सव परमात्मा की दया के ही फल हैं ? इसी लिये हमने पहले कहा 1 था कि एक कर्तृत्व गुण मान लेने पर परमात्मा के अन्य गुण - मी फिर ठहर नहीं सकते अतः किसी युक्ति से भी परमात्मा सृष्टि कर्ता सिद्ध नहीं हो सकता। * यदि कहोगे कि वेद ने ईश्वर को कर्ता सिद्ध किया है इसलिये ईश्वर का मानना ही चाहिए / तो इस विषय में हम पूछते हैं कि वेद किस ने वनाए ? यदि कहोगे ईश्वर ने ? तब तो यह अप्रामाणिक बात है। क्योंकि वेद शब्दात्मिक रूप हैं और फिर शब्द मुख से निकलता है सो जव परमात्मा का शरीर ही नहीं तो वेद किस के द्वारा बनाए गए सिद्ध में होंगे ? यदि कहोगे कि मन्त्ररचना ऋषियों ने की है और शान परमात्मा का है इसलिये वेदों को ईश्वरोक्त मानने पर कोई दोषापत्ति नहीं आसकती / सो यह कथन भी युक्तियुक्त नहीं है फ्योंकि श्राप लोग जीव को सर्वश तो मानते नहीं हो सो जव ऋषियों को ईश्वर के स्वरूप का ज्ञान है ही नहीं तो भला फिर उनको ईश्वरीय ज्ञान का उपदेश किस प्रकार माना जा सकता है ? तथा यदि वेद ईश्वरोक्त ही मान लिये जाये तो फिर अन्योन्य श्राश्रय दोप की भी प्राप्ति हो सकेगी। अत: यह कथन मी असमंजस ही है। किसी अध्यक्ष के सामने जिस प्रकार किसी ने अपना वृत्तान्त सुनाया और फिर उसने कहा कि मैं सत्य कहता है / तव अध्यक्ष ने प्रश्न किया कि तुम्हारी सत्यता का साक्षी कौन है ? तब उसने कहा कि मेरी TREATREATERIST-- --- FORXXXExtenxxwwxxx XXXXXX