________________ PERATORRERA K AXRXXXSIXSongs Romxnxxx PUCXEXXExerceGRAMRITERATrue // ब्रह्म की हो गई तब श्राप ही विचार करें क्या यह ब्रह्म की दया मानी जायगी? कदापि नहीं। ___यदि आप.यह कहेंगे कि यह सय क्रियाएँ माया ने की है ? म तो हम आप से पूछते हैं कि माया ब्रह्म से भिन्न है वा अभिन्न? यदि भिन्न मानोगे तव तो जगत् का उपादान कारण रूप ब्रह्म सिद्ध नहीं हो सकेगा क्योंकि जगत् में ब्रह्म और माया ये दो पदार्थ सिद्ध हो गए / यदि अभिन्न मानोगे तव तो ब्रह्म माया युक्त सिद्ध हो गया। जब वह मायायुक्त सिद्ध हुश्रा तव फिर उसको सर्वक्ष और सर्वदर्शी मानना एक अपने आग्रह ही की - बात है। . इस विषय में यह भी शंका उत्पन्न होती है कि माया सत् / है.घा असत् ? यदि प्रथम पक्ष ग्रहण किया जाय तव तोवेदान्त मत का सर्वस्व ही नष्ट हो जाता है / यदि असत् पक्ष ग्रहण किया जाय तय यह प्रपंच क्यों ? और फिर यह पंपच मिथ्या भी नहीं है / यदि ऐसा कहा जाय कि जिस प्रकार मृग तृष्णा काजल मिथ्या होता है वा रज्जु में सर्प की बुद्धि मिथ्या होती है, अथवा रात्रि समय टूट में चोर बुद्धि मिथ्या होती है, ठीक उसी प्रकार जगत् भी मिथ्या है / सो यह कथन भी // युक्तियुक्त नहीं है / क्योंकि मृग की श्रात्मा में जय जल का / सतमान स्थित था तव ही उसको नदी में भ्रम उत्पन्न हुश्रा? यदि उस को जल का सत्यशान न होता तो फिर उस को भ्राति किस प्रकार हो सकती थी। इसी प्रकार जब मश्च सर्प का शान हृदय में हो तब ही रज्जु में मर्प की भ्राति हो A सकती है और इसी प्रकार जब चोर का मान होता है तब - -- -- -- - ---..---