________________ - - KEDXXXREXIXEXXERRAZERXXXSAXX Xxxxinmexxxwwwxxx रुचि नहीं होने पाती और श्रतत्त्व रुचि भी नहीं होती / मिश्र मोहनीय का दूसरा नाम सम्यक् मिथ्यात्व मोहनीय है इन कर्म पुद्गलों में द्विस्थानक रस होता है। (3) सर्वथा अशुद्ध कोदो के समान मिथ्यात्व मोहनीय है इस फर्म के उदय से जीव को हित में अहित वुद्धि और अहित में हित वुद्धि होती है अर्थात् हित को अहित समझता है और अहित को हित / इन कर्म पुद्गलों में चतुःस्थानक, त्रिस्थानक और द्विस्थानक रस होता है।४ को चतुःके स्थानक को त्रिस्थानक और को द्विस्थानक रस कहते हैं। जो रस सहज है अर्थात् स्वाभाविक है उसे एक स्थानक कहते हैं / इस विषय को समझने के लिये नींव का एक सेर रस लिया इसे एक स्थानक रस कहेंगे / नींव के इस स्वामाविक रस को कटु और ईस्त्र के रस को मधुर कहना चाहिये। / उक्त एक सेर रस को श्राग के द्वारा कढ़ाकर आधा जला दिया / बचे हुए श्राधे रस को द्रिस्थानक रस कहते हैं / यह रस स्वाभाविक कटु और मधुर रस की अपेक्षा कटुकतर A और मधुरतर कहा जायगा / एक सेर रस के दो हिस्से जला 0 जाये तो बचे हुए एक हिस्से को त्रिस्थानक रस कहते हैं। यह रस नींव का हुआ तो कटुकतम और ईख का हुआ तो मधुरतम कहा जायगा / एक सेर रस के तीन हिस्से जला दिये जायँ तो बचे हुए पाव भर रस को चतुःस्थानक कहते हैं / यह रस नींघ का हुश्रा तो अतिकटुकतम और ईख का हुश्रा तो अतिमधुरतम कहा जायगा। इस प्रकार शुभ अशुभ फल देने की कर्म की तीव्रतम शक्ति को चतु:स्थानक, तीनतरशक्ति Mom Xxnxx XXXnxxdesixxx EMERA