________________ FREEKRANTEDxxxxxxxxnera ( 65 ) किया गया है कि यावन्मात्र कर्मों की मूल चा उत्तर प्रकतियाँ हैं, वे सर्व स्थिति यत है। अत स्थिति के पश्चात् फिर वे फल देने में असमर्थ हो जाती है / जिस प्रकार काठ 'वा इन्धन जल कर जब भस्म रूप हो जाता है तब फिर वह द्वितीय वार इन्धन रूप में नहीं श्रा सकता। ठीक उसी प्रकार जो कर्म एक वार फल दे चुका फिर वह द्वितीय वार फल नहीं दे सकता। क्योंकि उस कर्म ने श्रात्म प्रदेशों पर अपना अनु / भव करा दिया फिर वह फल देने के पश्चात् निप्फल हो / जाता है। सूत्रकर्ता ने कर्मों का फलादेश अनेकान्तरूप से प्रतिपादन किया है। जैसे कि अणत्थियाणं मंते, एवमाइक्खंति जावपरूति सव्वे पाणा सच्चे भूया सव्वे जीवा सव्वे सत्ता एवंभूयं वेयणं / वेदंति, से कहमेयं भंते, एवं गोयमा जगणं ते अणत्थिया एवमाइक्खंति जाव वेदंति जे ते एवमाहंसुमिच्छा ते एवमाहंसु / अहं पुण गोयमा ! एवमाइक्खामि जाच परवमि / अत्येगइया पाणा भूया जीवा सत्ता एवभूयं वेयणं वेदंति, अत्थेगइया पाणा भूया जीवा सत्ता प्रणेवभूयं वेयणं वेयंति।। से केण हेणं अत्थेगइया तं चैव उच्चारियन्वं गोयमा ! * जेण पाणा भूया जीवा सत्ता जहाँ कडा कम्मा तहा वेयणं / - वेदंति तेणं-पाणा भूया जीवा सत्ता एवंभूय वेयणं चेदति / / जेणं पाणा भूया जीवा सत्ता जहा कडा, कम्मा नो तहा' KCERAMERICARERARAMERIKERKEEX xxxxxxxxxcwxwxwXERER