________________ ---HIKARA...anama PunausxxxyamroYOORXH ( 26 ) इस प्रतिकुल तर्क का निवारण अशक्य नहीं है। यह देखा जाता है कि किसी वस्तु में जव एक शक्ति का प्रादुर्भाव होता / है तब उस में दूसरी विरोधिनी शक्ति का तिरोभाव हो जाता है / परन्तु जो शक्ति तिरोहित हो जाती है वह सदा के लिये नहीं, किसी समय अनुकूल निमित्त मिलने पर फिर भी उस का प्रादुर्भाव हो जाता है। इसी प्रकार जो शक्ति प्रादुर्भूत हुई होती है वह सदा के लिये नहीं, प्रतिकूल निमित्त मिलते ही | उसका तिरोभाव हो जाता है। उदाहरणार्थ-पानी के अणुओं को लीजिये / वे गरमी पाते ही भापरूप में परिणत हो जाते हैं। फिर शैत्य आदि निमित्त मिलते ही पानीरूप में वरसते / / अधिक शीतत्व होने पर द्रव्यत्वरूप को छोड़ वर्फरूप में से घनत्व को प्राप्त कर लेते है। इसी तरह यदि जड़त्व,चेतनत्व-इन दोनों शक्तियों को किसी एक मूल तत्त्वगत मान लें तो विकासवाद ठहर ही न सकेगा। क्योंकि चेतनत्व शक्ति के विकास के कारण जो श्राज चेतन (प्राणी)समझे जाते हैं वे ही सब जड़त्व शक्ति का विकास / होने पर फिर जड़ हो जायगे / जो पाषाण आदि पदार्थ आज जहरूप में दिखाई देते हैं वे कभी चेतन हो जायंगे और चेतन रूप से दिखाई देने वाले मनुष्य, पशु, पक्षी आदि प्राणी कभी जहरूप भी हो जायेंगे। श्रतएव एक पदार्थ में जड़त्व चेतनत्वइन दोनों विरोधिनी शक्तियों को नमानकर जड़ चेतनदो स्वतंत्र तत्त्वों को ही मानना ठीक है। (5) शास्त्र व महात्माओं का प्रामाण्य / या अनेक पुरातन शास्त्र मी आत्मा के स्वतन्त्र अस्तित्व का A प्रतिपादन करते हैं। जिन शास्त्रकारों ने बड़ी शातिव गंभीरता / KATARIKAAMRIDAmarwarrermerrr xxxxxEROXEXXEXXXXXXXXCRICAXEKH Yoxxxcxxxxxxxxxxxxxxxxxnxxom