________________ um- LHILO-AS -..' PRAXAXIXXXEXERXXIGITIERXXX ( 31 ) | की जर नहीं समझते किन्तु उसे मान के श्राविर्भाव का साचनमात्र समझते हैं। डा० जगदीश चोस, जिन्होंने सारे वैधानिक संसार में नाम पाया है, उन की खोज से यहां तक निश्चय हो गया है कि वनस्पतियों में भी स्मरणशक्ति विद्यमान है। घोस महाशय ने अपने श्राविकारों से स्वतन्त्र यात्म-तत्त्व मानने के लिय वैज्ञानिक संसार को मजबूर किया है। (7) पुनर्जन्म नीचे लिख्ने भनक प्रश्न ऐसे है कि जिनका पूरा समाधान पुनर्जन्म के माने विना नहीं हो सकता। गर्भ के श्रारम्भ से लेकर जन्म तक वालक को जो जो कष्ट भोगने पड़ते हैं ये सब उस बालक की कृति के परिणाम है या उस के माता पिता की कृति के ? उन्हें बालक की उस जन्म की कृति का परिणाम नहीं कह सकते, क्योंकि उसने गर्भावस्था में तो अच्छा या वुरा कुछ भी काम नहीं किया है। यदि माता पिता अच्छा या बुरा जो कुछ भी करें तो उसका परिणाम विना कारण वालक " को क्यों भोगना पड़े ? बालक को जो कुछ सुख दुख भोगना al पड़ता है, वह योही विना कारण भोगना पड़ता है-यह मानना * तो अज्ञान की पराकाष्ठा है क्योंकि विना कारण किसी कार्य H का होना असम्भव है। यदि यह कहा जाय कि माता पिता के श्राहारविहार का, विचार वर्तन का और शारीरिक मानसिक अवस्थाओं का / * इन दोनों चैतन्यवादियों के विचार की छाया, सवत् 1661 के न ज्येष्ठ मास के तथा सवत् 166. के मार्गशीप माम के और सवत् 1665 के भाद्रपद मास के "वसन्त" पत्र में प्रकाशित हुई है। HENXxxxxxxxxxxxxxx मxAEXEEEEEEEEEEEEEERuxxxwat: KAR