________________ ExFESTISEXANEES (10) शिवाक प्रतिस्प३ सम्मम्प में कितनी ही शरा, पान ते पर पर निर्षियार सिरकम मत सब मे मषित अगामाना गया समस सामों मनुष्योंकर का एE भीर उसी मा म ममुम्यों को तमान सफर महनेत्रीशकि पदा परम सपा मपिप्पत् जीपन को पारम में रोमा मिमा सपनस या स्पनादी सिसो माना कि कम सिमाम्त का मानना युझियह है। भास्मधार मानन मा पहिरोको कमपार भी मानना पगाकारण किमारा स्पीचार किये बिना भारमा संसार में : परिभ्रमण करना सियालीमही सस्ता फोसे की गरीर 1 ग्पमा तपा तिपादि का सत्पप रोना सिर होता है।मिस प्रकार एकाशिम (भमार) फा में पानीसबरपनि पुगे / पावसमीप्रकार प्रापक मामा केशरीपरिकी रचना समर पा मसुम्बा उसकेको अनुसारसीहोती। अब पा मम पम्पित होता वाशिम फस i में पाने कौन लगातार लगाता ! और उनमें नाना प्रकार * रंगो की रचना कौन करता है? तपा मपूर अपनों को सिमित भीमपरता ! इस प्रम समापान में कहा जाता है कि पारिम फस में पने बाले वीरश्रीषों पा मयूर मीर का जिस प्रकार नाम कर्म धन सिपा एमाहोता. ठीक उसी प्रकार मरीरों की सरा मसदर रसमा दो गाती है। सपा कम सिमान मायम करने में मही मातिगानीमा सन्ती। प्रपम में प्रेप की मस्तावना में विवामि -- मशाल मै शरीर मापा दिप प्रादि पर विचार / --VER SERIES