________________ CERITESHEE . I NEHEATEELERY चतुर्थ पाठ RELEAKIRANIXEXEEEEEEEEER (कर्मवाद) जय श्रात्मा कमी से सर्वथा विमुक्त हो जाता है तब यह स्वकीय आनन्द का अनुभव करने वाला होता है / जिस प्रकार मदिरा शुद्ध चेतना पर आवरण किए हुप होती है ठीक उसी प्रकार मोहनीय कर्म द्वारा श्रात्मिक मुगों पर आवरण होरहा है। अब इस स्थान पर यह प्रश्न उपस्थित होना है। कि क्या कर्म सिद्धान्त का अध्यात्मवाद पर भी प्रभाव पड़ता है ? इस प्रश्न के समाधान में कहा जाता है कि हॉ, अवश्य पड़ता है / वास्तव में कर्मों के ही प्रावरण ने पात्मिक निजानन्द को ढॉपा टुश्रा है। जैसे कि-फर्मग्रंथ की प्रस्तावना में लिखा है कि कर्म शास्त्र का अध्यात्मशास्त्रपन / अध्यात्म शास्त्र का उद्देश्य श्रात्मा सम्बन्धी विपयों a पर विचार करना है / श्रतएव उसको आत्मा के पारमार्थिक स्वरूप का निरूपण करने के पहले उसके व्यावहारिक स्वरूप फा भी कथन करना पड़ता है। ऐसा न करने से यह प्रश्न सहज ही में उठता है कि मनुष्य, पशु, पक्षी, सुखी, दुःखी श्रादि आत्मा a की दृश्यमान अवस्थाओं का स्वरूप ठीक ठीक जाने विना उसके-पार का स्वरूप जानने की योग्यता दृष्टि को कैसे प्राप्त हो सकती है ? इसके सिवाय यह भी प्रश्न होता है कि दृश्यRELARIXEEXXXITMENarnaxxx E-XIXxx