________________ पञ्चम पाठ AMERIODERATORREARRIERREDITORXXCXAXERARRAxarmulu! (कर्मवाद) श्रात्मा के अस्तित्व होने पर ही कर्मवाद का अस्तित्व माना जा सकता है क्योंकि जब आत्मा का ही अभाव हो तव कर्म का सद्भाव किस प्रकार माना जा सकता है। जैसे किवृक्ष के अभाव होने पर शाखा प्रतिशाखा वा पत्रादि का अभाव स्वयं ही हो जाता है ठीक उसी प्रकार श्रात्मा के अभाव मानने पर कमाँ का असाव स्वयमेव सिद्ध होता है। अब प्रश्न यह उपस्थित होता है कि श्रात्मा का अस्तित्व किन फिन प्रमाणों से सिद्ध है ? इस प्रश्न के उत्तर में कहा जाता है कि प्रथम कर्म ग्रंथ की प्रस्तावना में इस प्रश्न का समाधान इस प्रकार से किया गया है। जैसे कि आत्मा स्वतंत्र तत्त्व है। फर्म के सम्बन्ध में ऊपर जो कुछ कहा गया है उसकी ठीक ठीक संगति तभी हो सकती है जय कि श्रात्मा को जड़ से अलग तत्त्व माना जाए / आत्मा का स्वतंत्र अस्तित्व नीचे - लिखे सात प्रमाणों से माना जा सकता है (1) स्वसंवेदनरूप साधक प्रमाण (2) वाधक प्रमाण का अमाव (3) निषेध से निषेध कर्ता की सिद्धि (4) तर्क (5) शास्त्र व महात्माओं का प्रमाण (6) आधुनिक विद्वानों की सम्मति और (7) जन्म। XXCOMXMARIXXRKERXXXCAREERXXREAKERAXXXXX Yoxxxwwxiy E XICENROMAXIMIXAXE