________________ TOTRAXEXTEETHEIRYEARRES तृतीय पाठ XXXXXXXXSEXHEROEXH..... (कर्मवाद) श्रात्मा एक चेतन पदार्थ है, अनंत शक्तियों का समूह है, सवका उपास्य है और प्राणिमात्र का रक्षक है किन्तु कर्मा की उपाधि से युक्त होकर और निज स्वरूप को भूलकर नाना प्रकार के सासारिक सुख वा दुःखों का अनुभव कर रहा है किन्तु धर्मयुक्त शुभ कर्म मोक्ष पद की प्राप्ति के लिये सहायक " बनता है और पाप कर्म मोक्ष पद की प्राप्ति में बहुत से विघ्न उपस्थित करता है अत धर्मयुक्त शुभ कर्म व्यवहार पक्ष में शेय होने पर भी किसी नय के मत से उपादेयं रूप है / जिस प्रकार नद में नाव शेय रूप न होकर उपादेय रूप होती है ठीक उसी प्रकार धर्म युक्त शुभ कर्म भी किसी नय के मत से / उपादेय रूप माना जाता है। जैसे कि मनुष्यत्व भाव मोक्षाधिकारी माना गया है नतु पशुत्वादि सो व्यवहार पक्ष में भी कर्म सिद्धान्त स्वीकार करना योग्यता का श्रादर्श है। कर्म ग्रंथ की प्रस्तावना में लिखा है व्यवहार और परमार्थ में कर्मवाद की उपयोगिता। इस लोक से या परलोक से सम्बन्ध रस्त्रने वाले किसी के काम में जव मनुष्य प्रवृत्ति करता है तव यह तो असंभव म ही है कि उसे किसी न किसी विघ्न का सामना करना न पड़े। सव काम में सवको थोरे बहुत प्रमाण में शारीरिक या मानWxxxxxxxAXERTExaxxxxexi C-AAL