________________ ELEDEEMAGEXTRACTICAREEREKXxxxexi.na..-. NEXTREATREATRE ( 11 ) कर्मवाद में होने वाले श्रादेपी का प्रत्युत्तर प्रथम कर्म 1 अन्य की प्रस्तावना में इस प्रकार से वर्णन किया गया है / जैसे कि फर्मवाद पर होनेवाले आक्षेप और उन का समाधान ईश्वर को कर्ता या प्रेरक मानने वाले कर्मवाद पर नीचे लिखे तीन आक्षेप करते है - (1) घड़ी मकान श्रादि छोटी-मोटी चीजें यदि किसी के व्यक्ति के द्वारा ही निर्मित होती है तो फिर सम्पूर्ण जगत् जो कार्य रूप दिखाई देता है उस का भी उत्पादक कोई अवश्य होना चाहिये। (2) सभी प्राणी अच्छे या बुरे कर्म करते है पर कोई बुरे कर्म का फल नहीं चाहता और कर्म स्वयं जड़ होने से किसी चेतन की प्रेरणा के विना फल देने में असमर्थ हैं। इसलिये कर्मवादियों को भी मानना चाहिये कि ईश्वर ही प्राणियों को कर्मफल देता है। (3) ईश्वर एक ऐसा व्यक्ति होना चाहिये कि जो सदा A से मुक्त हो और मुक्त जीवों की अपेक्षा भी जिस में कुछ विशेषता हो इसलिये फर्मवाद का यह मानना ठीक नहीं कि / कर्म से छूट जाने पर सभी जीव मुक्त अर्थात् ईश्वर हो जाते है। a (1) पहले आक्षेप का समाधान यह जगत् किसी न समय नया नहीं चना-यह सदा ही से है। हाँ, इस में A परिवर्तन हुश्रा करते हैं / अनेक परिवर्तन ऐसे होते हैं कि inexxxxxATExxxxxxx imoonxxwcomxxnxxx xx